कबीर के दोहे हिंदी PDF | Kabir Ke Dohe In Hindi PDF FREE DOWNLOAD

आज की इस पोस्ट में हम आप को महा कवि Kabir Ke Dohe In Hindi PDF देने वाले है जिसके अनुसार आप कबीरदास के सारे दोहे आसानी से पड़ सकते है ओर जिसे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते है | कबीर दास जी के इतने दोहे है की जीने किसी बुक के मध्यम से पड़ा जाता है पर हम आप को Kabir Ke Dohe In Hindi PDF देंगे जिसे आप कबीर के दोहे को हिंदी में आसानी से पड़ सकते है आपको तो पता ही होगा की कबीर राम के भक्त थे कबीर कवि और समाज सुधारक थे। कबीरदास भारत के भक्ति काव्य परंपरा के महानतम कवियों में से एक थे

कबीर दास एक बहुत बड़े संत और अध्यात्मिक इंसान थे जो की एक संत यानि साधू का जीवन व्यतित करते थे उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण उन्हें पूरी दुनिया में प्रसिद्धी प्राप्त थी कबीर हमेशा जीवन के कर्म में विश्वास रखती है वह कभी भी अल्लाह और राम के बीच भेद नही नही करते है उन्होंने हमेशा अपने उपदेश में उलेख किया है की अल्लाह और राम दोनों भगवान के नाम के पहलू है उन्होंने लोगो को उच्च जाती और नीच जाती को नकारते हुए सब को मिल झूलकर भाईचारे के धर्म को माने की सहला दी है

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कबीर के दोहे हिंदी PDF | Kabir Ke Dohe In Hindi PDF

वेसे तो कबीर दास जी ने कई दोहे लिखे है जिनमे से हम आपको Kabir Ke Dohe In Hindi PDF भी देंगे जिसके बारे हम आपको बतायंगे की आपको Kabir Ke Dohe In Hindi PDF कहा से और केसे डाउनलोड करना है तो दोस्तों ब्लॉग को अंत तक जुड़े रहे जिसमे हम आपको Kabir Ke Dohe In Hindi PDF डाउनलोड कैसे करना सब कुछ बताएँगे कबीरदास जी ने अपनी दोहों के माध्यम से मानवीय मूल्यों, जीवन के तत्वों और ईश्वर के प्रति अपने अद्वैतीय दृष्टिकोण को व्यक्त किया है यहां कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध कबीर के दोहे हैं |

माटी की मूरत मानूँ, मनी न तोहि मति धराय।
काया वाचा मन सब पाचा, मुख से कहाँ अवगाय॥

जो तू कहें नहीं कोयी, जो कोयी तू न कहिये।
सुन्या समाधान गहरा, कहते कबीर न जाये॥

संसार रूपी मधु के बीच, जो गुद घी न तेरा।
मखन जैसे द्वितीय रूप, तू चाहत जग खानेरा॥

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लगे अति दूर।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

साच बराबर तप नही, झूठ बराबर पाप |
जाके हृदय में साच है ताके हृदय हरी आप||

सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

कबीरा गरब ना कीजिये , कभू ना हासिये कोय |
अजहू नाव समुद्र में, ना जाने का होए ||

कुटिल बचन सबसे बुरा , जासे हॉट न हार |
साधू बचन जल रूप है , बरसे अमृत धार ||

कबीरा लोहा एक है , गढ़ने में है फेर |
ताहि का बख्तर बने , ताहि की शमशेर ||

कामी लज्जा न करे मन माहे अहिलाद|
नीद न मांगे सांथरा, और भूख न मांगे स्वाद||

जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

साच बराबर तप नही, झूठ बराबर पाप|
जाके हृदय में साच है ताके हृदय हरी आप||

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय॥

मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीत।
हरि हीत, मन हीत, मन हीत, हरी हीत॥

कबीरा खड़ा बाजार में, सब की मांगे खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोय॥

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

जो तूटा तो नहीं हूँ, वो तूटा तो नहीं।
कैसे टूटते दोनों, वड़ा न तोड़ीए कोय॥

दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, दुःख काहे को होय॥

जहाँ होता है श्रीराम, वहीं होती है बात।
जहाँ रहती है अंधकार, वहीं रहती है रात॥

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Conclusion 

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